23 जून 2011

सपनो को उग आयें पर

ख़त का जवाब ले आएगा हरकारा
चाहो मीत पुराना जब टूटे एक तारा .


निस दिन चहुँ ओर कोयल कूकेगी
भूला भटका दिख जाये  बादल बंजारा.


पत्ता पत्ता जलतरंग जब झूमे सावन
अम्बर नाचे हाथों में ले इकतारा.


हम नदी में दीप  जलाने  आ गए,
तुम्हारे गाँव जायेगी यह जलधारा .


अक्सर चांदनी रातों में छत पर ,
ढाई अक्षर अपने ढूंढे शहर सारा .

उस कुँए में सिक्का डाल के चाहा ,
सपनो को उग आयें पर , यारा !!




2 टिप्‍पणियां:

  1. अक्सर चाँदनी रात में ... बहुत ही सही एहसासों को उभारा है

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  2. भीनी भीनी प्रेम की फुहार उड़ रही हो जैसे ... अच्छी पंक्तियाँ हैं अतुल जी ...

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आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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