26 मई 2011

गुड मॉर्निंग

अभी अभी
नभ में टूटा कोई तारा
हमने नहीं देखा
नदी के तट पर
हर शाम की तरह
खुद का प्रतिबिम्ब निहारता
अपार जल-राशि पर अपनी लालिमा बिखेरते हुए डूबा सूरज
घाट पर पानी में अठखेलियाँ करती होंगी मछलियाँ
पंछी चहकते हुए अपने घरौंदों को लौट चुके होंगे
माँ ने संभाल ली होगी रसोई
श्रीनाथ जी के मंदिर में संध्या हो गयी
और हो जायेगा शयन
दूकान बंद कर बनिया घर लौट जायेगा
बंद हो जायेंगे रौशनी में जगमगाते शो रूम
चुंधियाते बल्बों में खड़े सजे पुतले थक कर सो जायेंगे
सारा दिन दौड़ती बस थक हार कर पस्त हो लौटेगी डिपो में
बिटिया सो कर उठेगी
सजेगी
कुछ खा कर निकल जायेगी
शहर की उन्धियाती रौशनी में सरपट भागती कार
ले जायेगी उसे
पहुँच कर बैठेगी काल सेंटर में
उठायेगी फ़ोन
और आधी रात में मधुर आवाज़ में बोलेगी
'गुड मॉर्निंग '
'में आई हेल्प यू ?'

11 टिप्‍पणियां:

  1. बिटिया सो कर उठेगी
    सजेगी
    कुछ खा कर निकल जायेगी
    शहर की उन्धियाती रौशनी में सरपट भागती कार
    ले जायेगी उसे
    पहुँच कर बैठेगी काल सेंटर में
    उठायेगी फ़ोन
    और आधी रात में मधुर आवाज़ में बोलेगी
    'गुड मॉर्निंग '
    'में आई हेल्प यू ?'
    zindagi kitni ajeeb ho gai hai ...

    जवाब देंहटाएं
  2. बिटिया सो कर उठेगी
    सजेगी
    कुछ खा कर निकल जायेगी
    शहर की उन्धियाती रौशनी में सरपट भागती कार
    ले जायेगी उसे
    पहुँच कर बैठेगी काल सेंटर में
    उठायेगी फ़ोन
    और आधी रात में मधुर आवाज़ में बोलेगी
    'गुड मॉर्निंग 'aaj kal ki bhag-daod waali jindagi ko darshaati,yathart ka chitran liye anoothi rachanaa.badhaai aapko.


    please visit my blog and leave a comments also.

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  3. कॉल सेंटर में काम करने वालों का अधि रात को गुड़ मार्निंग ही होता है ..सटीक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. काल सेंटर वालों का दर्द बयाँ कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
  5. बिटिया सो कर उठेगी
    सजेगी
    कुछ खा कर निकल जायेगी
    शहर की उन्धियाती रौशनी में सरपट भागती कार
    ले जायेगी उसे
    पहुँच कर बैठेगी काल सेंटर में
    उठायेगी फ़ोन
    और आधी रात में मधुर आवाज़ में बोलेगी
    'गुड मॉर्निंग '
    'में आई हेल्प यू ?'
    ...आजकल की शहरी जिंदगी में दौड़ते भागते जीते लोगों का सटीक चित्रण ...जाने क्या क्या न पापड़ बेलने पढ़ते हैं जिंदगी में ...
    सार्थक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

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  6. (जीवन की आपाधापी में जीवन ही पीछे छूट गया
    आशाओं के तप्त अलाव में सरस तृप्ति घट फूट गया)
    --
    ऐसी ही भागमभाग करती हुई एक सहकर्मी को देखकर मैंने सहसा लिख दिया था- शुक्र है कि मेरे कोई बिटिया नहीं है और अगर होती भी तो मैं शायद उससे नौकरी न करवाना चाहता- इस दर्द के पीछे के दोषियों को भी बेनकाब करना चाहिए, जिन्होंने बिटिया को ऐसे संतापमय मार्ग पर चलने की छूट दी है।
    कृपया क्षमा करें जिनकी यह दर्द कहानी है पर क्या करें आज जीना ही इतना महंगा हो गया है कि हर आदमी का कमाना लाजिमी होता जा रहा है और रहा कुछ हमारी आंग्ल शिक्षा देवी का वरदान जिसने सब कुछ दिया पर चैन हर लिया- शायद गुप्त जी ने पहले ही भांप लिया था कि- शिक्षे तुम्हारा नाश हो तुम नौंकरी के हित लगीं ।

    सादर-
    डॉ रावत

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  7. त्रिवेदी जी, क्या गजब की कविता है ... पढकर मज़ा आ गया ... बहुत दिनों बाद इतनी अच्छी कविता पढ़ी है मैंने ...

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  8. बदलते हुए परिपेक्ष से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है मन ...!!
    अच्छे उदगार हैं .
    बधाई.

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  9. बेहद भावमय करते शब्‍द हैं इस रचना के

    बिल्‍कुल सच कहा है आपने ।

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  10. दिल को छू गयी यह कविता . आभार .

    जवाब देंहटाएं
  11. बिटिया सो कर उठेगी
    सजेगी
    कुछ खा कर निकल जायेगी
    शहर की उन्धियाती रौशनी में सरपट भागती कार
    ले जायेगी उसे
    पहुँच कर बैठेगी काल सेंटर में
    उठायेगी फ़ोन
    और आधी रात में मधुर आवाज़ में बोलेगी
    'गुड मॉर्निंग '
    'में आई हेल्प यू ?'


    सार्थक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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