यमुना के आँचल पर
चाँद का थिरकता नाच
देखने दो
मत रोको .
घास पर लेटा हुआ
पेड़ों के झुरमुटों से
चेहरे तक आता सूर्य का ताप
या रश्मियों से बनी स्वर्ग की सीढियां ?
रात टिमटिमाते तारों में
याद के पंछी
या जुगनुओं की बारात ?
ओस से नहायी
भीगी कलियों का स्पर्श
या छू गया खिलखिलाता चेहरा तुम्हारा ?
नहीं आज नहीं
चाय का प्याला ,
सुबह का अखब़ार,
ना ही झोला लिए
सुबह सुबह
रसोई के लिए बाज़ार.
नहीं आज कोई कविता नहीं .
सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंshabdon kaa chayan badhiya.........achchha lagaa padhkar
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