7 जुलाई 2010

नहीं आज कोई कविता नहीं

यमुना के आँचल पर  
चाँद का थिरकता नाच 
देखने दो 
मत रोको .
घास पर लेटा हुआ 
पेड़ों के झुरमुटों  से
चेहरे तक आता सूर्य का ताप 
या रश्मियों से बनी स्वर्ग की सीढियां ?
रात टिमटिमाते तारों में 
याद के पंछी 
या जुगनुओं की बारात ?
ओस से नहायी 
भीगी कलियों का स्पर्श 
या छू गया खिलखिलाता चेहरा तुम्हारा  ?
नहीं आज नहीं 
चाय का प्याला ,
सुबह का अखब़ार,
ना ही झोला लिए 
सुबह सुबह
रसोई के लिए बाज़ार.
नहीं आज कोई कविता नहीं .

2 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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