आजकल शिक्षा को लेकर देश में एक बहस छिड़ी हुई है . नए केंद्रीय शिक्षा मंत्री शिक्षा को लेकर अपने पूर्व मंत्रियों की तुलना में कुछ ज्यादा ही उत्साहित हैं . और उनका विरोध या उनके द्वारा अभिव्यक्त की गयी मंशाओं और उनके द्वारा लाए गए प्रारूपों के विरोध में मुखरित स्वर भी उतने ही उत्साहित हैं .
पहले ही स्पष्ट कर दूँ की मैं इस लेख के शीर्षक के सन्दर्भ में एक वक्तव्य रखना चाहूँगा . हमें यहाँ ज्ञान और शिक्षा को दो अलग अलग संज्ञाओं के रूप में लेना होगा . हम इन्हें अदल बदल कर उपयोग नहीं कर रहे .
वस्तु बाज़ार के कुछ नियम हैं . और उनके प्रति हमारा व्यवहार भी चिरपरिचित है .मसलन , वस्तु बाज़ार में मिलती है . वस्तु खरीदी और बेची जाती है .वस्तु की मांग और आपूर्ति के अनुपात में उसकी कीमत घटती और बढती है . वस्तु को तरह तरह के स्थानों पर ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है .
एक ही वस्तु ग्राहक की मांग और क्षमता के अनुरूप बाज़ार में अलग अलग तरह से डिब्बाबंदी की जाती है . वस्तुओं का प्रचार किया जाता है . और एक तरह के ब्रांड या मार्का की मांग बढ़ने पर उसे स्वयं या फ़्रैन्चाइजी के माध्यम से अन्यत्र पहुँचाया जाता है . वितरण और सुपुर्दगी भी वस्तु बाज़ार का हिस्सा हैं . और प्रचार प्रसार भी . मनुष्य वस्तु को अपनी जरुरत और क्षमता के अनुसार खरीदता है . वस्तु उपहार और लेनदेन के काम भी आती है .
वस्तुओं के दो प्रकार हैं . एक जिनको हम बाह्य रख कर उपयोग करतें हैं मसलन घर , गाड़ी , उपकरण आदि , और वो जिन्हें हम आत्म्य कर उपयोग करतें हैं . जैसे भोजन , फल इत्यादि. शिक्षा दूसरी श्रेणी में रखी जा सकती है एक अपवाद के साथ, की बाह्य रहने तक भी यह वर्त्तमान में हस्तांतरणीय नहीं है .भोजन की तरह .
जब भी हम वस्तु की बात करतें है तब हमारे जेहन में इनके उत्पादक , उत्पादक संस्थानों , उनके प्रकार और स्वामित्व , लागत, बाज़ार नियमों , मानकों के विचार भी आतें हैं . और बाज़ार का उल्लेख होते ही बाज़ार के खण्डीकरण और वर्चस्व का उल्लेख भी जरूरी हो जायेगा . वस्तु के प्रचार प्रसार , और उनसे जुड़े अन्य व्यवसायों का जिक्र भी स्वाभाविक होगा .
पर वस्तु और बाज़ार का उद्गम यहाँ नहीं . वह समाज , मनुष्य की प्राथमिकताओं , संसाधनों , और सबसे ऊपर मनुष्य की इच्छा , जरूरत , और चाह पर निर्भर होता है . जिसका जितना आकार उसका उतना बाज़ार . हम चीजें क्रय करतें हैं , मूल्य निर्धारित करतें हैं इस बिना पर की उससे हमारी कितनी उपयोगिता सिद्ध होगी . और जो शेर की सवारी नहीं कर सकता वह शेर भी नहीं खरीदता . आखिर शेर की उपयोगिता सवारी के लिए नहीं है जो .
ज्ञान के और शिक्षा के सन्दर्भ में बहस की बहुत गुंजाईश है . और इसका विन्यास बहुत बड़ा . अतैव मैं यह पूरी बहस इस बिना पर ले रहा हूँ की शिक्षा ज्ञान से अलग है . ज्ञान सार्वभौमिक सम्पदा है . वायु , जल की तरह . पर अगर वह जिस रूप में हम ग्रहण कर सकतें हैं उस रूप में चाहिए तो उसे उस रूप में उपलब्ध कराने का बाज़ार स्वयं निर्मित हो जायेगा . और ज्ञान शिक्षा रूपी वस्तु के रूप में हमारे सामने होता है . ज्ञान का उपयोग उसके संचयन , व्यवस्थापन , प्रस्तुतीकरण , हस्तांतरण , और उसकी स्वीकृति पर टिका है . अगर हम ज्ञान का अर्जन करें और ज्ञान में वृद्धि करें तो वह जितनी हमारी सम्पत्ति है उतनी ही सार्वभौमिक . नए ज्ञान का सृजन पूर्वपुरुषों द्वारा संचयित और उपलब्ध समस्त ज्ञान के कारण है प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष. यहाँ पूर्वपुरुषों से तात्पर्य समस्त मानवजाति से है . पर विगत वर्षों में हम कुछ संबंधों में बौध्दिक सम्पदा की नयी शब्दावली से परिचित हो रहें हैं . इस पर भी बहस की गुंजाईश है , और करेंगे भी .
उपनिषद में एक सूत्र पढ़ा था , मर्म समझा या नहीं , नहीं मालूम पर उसे उद्धृत करने की इच्छा बहुत दिन से दबी है . और लोभ संवरण नहीं होता . अगर विषयान्तर भी हो तो ध्यान दें –
अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते . ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायाँ रताः
शब्दशः अनुवाद होगा - गहरे अंधकार में प्रवेश करते हैं वे जो अविद्या की उपासना करतें हैं . और उससे भी गहरे अंधकार में प्रवेश करतें हैं विद्या में रत हैं जो .
सम्प्रति हम ज्ञान - शिक्षा, आंकड़ा - सूचना की बहस से बचेंगे और अपने विषय पर आगे बढतें हैं . (क्रमशः)
Gyaanvardhak!
जवाब देंहटाएंAgli kadi ka intezaar rahega!
Ashish
नए ज्ञान का सृजन पूर्वपुरुषों द्वारा संचयित और उपलब्ध समस्त ज्ञान के कारण है प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष. यहाँ पूर्वपुरुषों से तात्पर्य समस्त मानवजाति से है . पर विगत वर्षों में हम कुछ संबंधों में बौध्दिक सम्पदा की नयी शब्दावली से परिचित हो रहें हैं . इस पर भी बहस की गुंजाईश है , और करेंगे भी .
जवाब देंहटाएं...badi hi taarkik andaaj se aapne shiksha ke bigadti dasha par kaye sawal uthaye hai....
..kasha yah baat hamare neeti nirdharan se judhe shashan aur prashan mein baithe log samjh sakte..
Saarthak prastuti ke liye aabhar