8 जुलाई 2010

कतरनें ,चिन्दियाँ , पैबंद

रीती खाली जगह भरने 
जमा की कतरनें 
टूट न जाये भंगुर 
नाजुक ह्रदय 
यात्रा की आपाधापी में .
तार-तार हुए 
संबंधों की चिन्दियाँ 
बन गयी गाठें 
घावों की मरहमपट्टी में .
छिद्र-छिद्र आकाश पै
बादलों के पैबंद 
नहीं रोक सके 
अन्दर का बांध
मन भींग गया 
बूंदा-बांदी में . 

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