20 जुलाई 2010

कुछ कहना सुनना

उससे मुलाकात की गुंजाइश नहीं रही
फिर शहर में वो नुमाइश नहीं रही .
बिछड़ा हुआ महबूब अचानक मिल गया
खतोकिताबत की फरमाइश नहीं रही .
बेबसी बूढ़े बाप की गबरू जवान बेटा
बात फिर भी की समझाइश नहीं रही .
जिस दोस्ती में बेतकल्लुफी नहीं रही
फिर उस दोस्ती की खवाइश नहीं रही .
हम भाइयों में झगड़ा वैसा नहीं हुआ
अम्बानी- बजाज की पैदाइश नहीं रही .
.

1 टिप्पणी:

  1. अतुल जी बहुत अच्छी जगह है आपका ब्लॉग.आपकी कविता दिल से बोलती है.

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आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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