चिर परिचित गतिशील
घूमती रही घड़ी की कील ||
नश्वर वर्ष का प्रलाप
किसका कैसा माप;
बाकी कितनी घड़ियाँ?
बाकी कितना जाप ?
जीवन कँवल - करील
घूमती रही घड़ी की कील ||
वह एक नीरव संवाद
उसका नहीं अपवाद
आओ मिलकर पूछें
किसे ले जायेगा निषाद ?
फिर इतना नहीं जटिल
घूमती रही घड़ी की कील ||
काल चक्र वैराग्य काल
किसको कर दे मालामाल ?
उसकी डफली उसका राग
अब कौन मिलाये ताल ?
वो अमर ज्योत कंदील
घूमती रही घड़ी की कील ||
अनंत नभ में जैसे विहंग
अनंत सागर में फ़ैली तरंग
प्रकृत धरा पर अविराम
प्रस्फुटित होते अनंत रंग
सबसे मोहक रहे कपिल
घूमती रही घड़ी की कील ||
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