सुनता है औरों की दास्ताँ किस्सागो !
कहता है बस अपनी जुबां किस्सागो !!
अफसाने में , खुदा भी है ,
आशिक भी है , सिजदा भी है ,
बस्ती भी है , वीरान भी है ,
आदम भी है , शैतान भी है ,
लेता है सबके बयां किस्सागो !
अफसाने में , अफसाना भी है ,
मस्जिद भी , मयखाना भी है ,
महफ़िल भी , तन्हाई भी ,
शैदाई भी , रुसवाई भी ,
लेता है सबको आजमां किस्सागो !
वो शब्दों का सौदागर है ,
वो जाल बुनेगा अफसाने से ,
ना कहने वाली बातें भी ,
वो कह देगा ज़माने से ,
क्यों रक्खे फतवों का गुमां किस्सागो !
देखा भी , और देखा भी नहीं ,
वो लाख निगाहें रखता है ,
तुम दो होठों से कहते हो ,
वो सौ कानों से सुनता है ,
देखता है हर उठता धुआं किस्सागो !
तुम सौ पर्दों में रखते थे जिसे ,
वो पर्दा आज जला डाला ,
माज़ी तेरा , यादें तेरी ,
सोच के कैसे खुला ताला ?
रखता नहीं कुछ दरमियाँ किस्सागो !
हर मुमकिन आँखों से उसने
एक- एक चेहरा देख लिया ,
उसने हर मंजर देख लिया ,
हर शख्श को गहरा देख लिया,
ले लेता है हर इम्तहां किस्सागो !
तुम शीशे में उतरे जैसे ,
वो वैसा ही अक्श बनाता है ,
हाथ उसी का जलता है ,
फिर भी वो आग लगाता है ,
जला लेता है अपना मकां किस्सागो !
सैकड़ों थी जुबां , बयां एक ,
सैकड़ों थे नश्तर, चुभा एक,
सैकड़ों थे हाथ, उरयां एक ,
अब सैकड़ों पत्थर , निशां एक ,
चलता है दोधारी कजां किस्सागो !
अफसाना बस अफसाना है ,
ये अक्श तुम्हारा ही है तो गलत ,
ये उम्र तो बस फ़साना है ,
ये वक्त तुम्हारा ही है तो गलत ,
ख्यालों को छेड़ गया बेइंतहा किस्सागो !
अफसाना बस अफसाना है ,
ये अक्श तुम्हारा ही है तो गलत ,
ये उम्र तो बस फ़साना है ,
ये वक्त तुम्हारा ही है तो गलत ,
ख्यालों को छेड़ गया बेइंतहा किस्सागो !
दिल को टटोलने वाली बात ...सतीश कुमार चौहान भिलाई
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