(१)
सोचता हूँ
काशी चला जाऊं
मैं और काशी
बहुत दिनों से नहीं मिले |
मुझे मालूम है
काशी
मुझे बहुत याद करती है |
मुझ पर और शिव पर
बहुत कृपा है काशी की |
(२)
मेरे और शिव के बिना काशी
क्या होती ?
शायद वैसे ही
जैसे काशी के बिना
मैं और शिव |
फिर लोग काशी क्यों छोड़ जाते हैं ?
(३)
शिव कौन है ?
मैं नहीं जानता |
शिव क्या है ?
शायद जानता हूँ |
(४)
जिसने संसार में रह कर इसे छोड़ दिया
जो इसमें है भी और नहीं भी |
जिसको मालूम था
अमृत भी निकलेगा
ऐरावत भी ,
लक्ष्मी भी |
मंथन जब भी होगा
जब भी
वासुकी , कश्यप , और मदरांचल
ये तीनो मिल मथेंगे
निकलेगा विष
नहीं हलाहल |
जब भी अपनाना होगा
काशी शिव मांगेगी |
जो - संसार में रहकर भी इसे छोड़ दे
जो इसमें है भी , और नहीं भी
हलाहल जब भी पीना होगा
शिव पिएगा
काशी ने शिव माँगा |
(५)
किसको होना है शिव ?
मेरे पास है एक हलाहल |
मैं काशी भी हो आया |
किसको होना है शिव ?
मेरे पास है एक हलाहल
पिएगा शिव ही |
शिव को ही पीना होगा |
हलाहल जब भी पीना होगा
शिव ही पिएगा |
(६)
ज्वाला
विष की
प्रचंड हो जाती है
हाहाकार मचाती है |
जब मन मंथन होता है
द्वन्द होता है
रात्रि के नीरव में मैं
औघड़ होता हूँ
जब होता है - श्मशान मन |
रोज निकलता है विष
रोज मनमंथन होता है
मेरे पास है एक हलाहल
किसको होना है शिव ?
(७)
काशी बुला रही है |
एक ही होगा -
अकेला , अनूठा
शिव|
एक ही है - हलाहल |
(८)
जिसको जीवन ने ठुकराया
दर्शन ने विछिन्न किया
सबको समेट लिया शिव ने
अंत में - वही बचा
जिसको शिव ने सहेजा
काशी शिव की है
काशी शिवमय है |
वृद्धों , अपाहिजों , विधवाओं , रोगी ,
और मृतक शरीरों ,
जिस-जिस को जीवन ने ठुकराया
सबको ,सहज समेटा काशी ने |
विष को सबने लौटाया
काशी ने सहेजा
इसे शिव ही समेट सकता है |
संसार का हलाहल - शिव ही पिएगा |
(९)
लोग - काशी क्यों छोड़ जाते हैं ?
शिव को उसने जाना है
जो काशी से मगहर जाता है |
काशी से मगहर जाना
शायद शिव हो जाना है |
(१०)
जंगल के फूल ,
बिल्व के पत्ते ,
धतुरा |
किसने सोचा ये मान पाएंगे ?
शिव के सब
इनके जैसे हैं |
जिसने शिव को जाना
वो ही ये जान पाएंगे
क्यों मान दिया शिव ने
जंगल के फूल ,
बिल्व के पत्ते ,
धतूरे को |
जब भी प्रतिष्ठा पानी होगी पांडित्य को
वह काशी जाएगी |
(११)
पांडव में प्रवीण
भोला है ,
होता है ना आश्चर्य ?
त्रिनेत्रधारी
भोला है |
होता है ना आश्चर्य ?
ऐसा ही है शिव
तांडव में प्रवीण त्रिनेत्रधारी
और भोला |
सहजता का पर्याय |
(१२)
शिव होना
सहज होना है
हलाहल के बीच
हलाहल के साथ
हलाहल में |
(१३)
शिव कौन है ?
मैं कौन हूँ ?
काशी कौन है ?
काशी है परंपरा - अविराम
अपना कहने की
उसे जो पी सके - हलाहल |
काशी उस जगह का नाम नहीं
जहाँ मरने पर स्वर्ग मिलता है |
काशी उनको स्वर्ग है
जो हलाहल पीने की सहजता रखते हैं |
चूँकि वे हैं
इसलिए काशी है |
परम्परा तब तक रहती है
जब तक उसका निर्वाह होगा |
मैं कौन हूँ ?
मैं किसी व्यक्ति का संबोधन
या
सर्वनाम नहीं हूँ |
मैं हूँ प्रेरणा
जिसे लगता है काशी बुला रही है
मैं जिसे लगता है
मैं काशी का हूँ |
मैं जिसे लगता है
सारा हलाहल मेरा हिस्सा है
मैं जिसे लगता है
काशी उसकी है |
मैं हूँ प्रेरणा
जो उद्वेलित करती है
परंपरा निर्वाह को |
शिव कौन है ?
परंपरा और प्रेरणा के बीच अगर सेतु है
निर्वाह है
शिव है |
प्रतिष्ठा है - तो शिव है |
मैं और काशी तो इस संसार के हैं
शिव है
जिसने संसार में रह कर इसे छोड़ दिया
जो इसमें है और नहीं भी
मैं और काशी तो फिर भी बंधे हैं शिव से |
शिव कहीं भी हो
उसकी वह काशी है
पर "वह कहीं " शिव का न होगा |
होगा तो - काशी होगा |
इससे शिव को अंतर कुछ नहीं
शिव होना
कहीं भी रहकर उसे छोड़ना है |
पुनश्च :
मैं काशी जाऊँगा -
और फिर काशी से मगहर |
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