अब भी ऊँची बहुत है ये बारादरी,
जबकि नीचे नदी की बाढ़ नहीं उतरी |
फूलों की पाँखुरी पै अंगारे रखे थे ,
फिर भी तेरी कही बात नहीं अखरी|
जिन हवाओं में नहीं थी तेरी खुशबू ,
जिंदगी वहाँ कब कहाँ थी ठहरी |
सामने जब भी आये मेरे पैमाने ,
याद आयीं तेरी आँखें भरी- भरी |
दरवाजा यूँ ही खुला रखा है,
पता है कोई ना आएगा इस दुपहरी|
जिन हवाओं में नहीं थी तेरी खुशबू ,
जवाब देंहटाएंजिंदगी वहाँ कब कहाँ थी ठहरी |
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वाह क्या बात है - भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ...आगे बढ़ें ...शुभकामनायें