9 नवंबर 2010

बातें

जब भी करता हूँ मैं याद पुरानी बातें ,
लोग कहतें हैं की होती हैं तुम्हारी बातें |
बयानों की तरह सहेजें तो मैं क्या करूँ ?
मैंने ख़त में कब लिखी थीं सारी बातें |
तुमसे उम्मीद नहीं कौन याद रखता है ?
सैकड़ों लोगों में किसी की सारी बातें |
रेत के घरौंदे को घर भला किसने कहा ?
इस   उम्र में होती हैं सब कवारीं बातें |
उम्र गुजर जाए फिर ना कहना की 
मेरे कानों में कह दो प्यारी-प्यारी बातें |
मुझको  इनके सहारे ही जीना होगा ,
मुझको याद हैं सब जुबानी बातें |
आजकल चुप हूँ मुझे शक तो था ,
उसे ढूँढ रहा हूँ जिसने मेरी चुरा ली बातें|
तुमने ही भूले से लिया होगा नाम मेरा ,
मैंने कब दी थीं किसी को गवाही बातें |

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