उसके सीने में आग बहुत है ,
उसका इरादा खतरनाक बहुत है |
उस मोड़ पर कबसे खड़ा मैं ,
सोचता हूँ घर पास बहुत है |
जिन किताबों को मैंने पढ़ा है ,
उनमे जिक्र तेरा खास बहुत है |
चाँद निकला नहीं तो कह दो ,
के मौसम के खिलाफ बहुत है |
मेरे रूबरू नहीं थी तो क्या ?
बात अपने में साफ बहुत है |
सुन्दर रचना. बधाई.
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