15 दिसंबर 2010

मेरे हमसफ़र

मेरे हमसफ़र 
तेरे साथ जो सफ़र हुआ 
उसका मुझपे ये असर हुआ 
की तमाम उम्र रहा जुदा जुदा 
कहीं छुट गया मेरा खुदा 
की जिनको मुझपे नाज था 
की जिनका मैं हमराज था 
की जिनको मुझसे था राबता 
वो ही ढूंढते हैं अब मेरा पता .
तुझे ईल्म नहीं पर मैं हूँ जानता 
तेरी कायनात बड़ी अजीब है 
मेरे दोस्त ही मेरे रकीब है 
ये जो तेरे  रस्मो-रिवाज हैं 
और मेरे  ख्वाबों के परवाज हैं 
यहाँ धूप नहीं , कोई छावं नहीं 
ये मेरे सपनों का गाँव नहीं 
यहाँ कोई दरख़्त नहीं जो मुझे बाँध ले .
ना आँख में कोई नूर है 
ना जिसे अपना कहूँ दस्तूर है 
यहाँ सोच में  है बड़ा फासला 
मुझे क्या मिला ? तुझे क्या मिला ?
नहीं मुझे नहीं है कोई गिला ,
अपना अपना नसीब है 
मेरे हमसफ़र 
तेरे साथ जो ये सफ़र हुआ 
मैं कहाँ कहाँ से गुजर गया 
एक उम्र हुई मैं सोया नहीं 
कोई रात नहीं जो रोया नहीं 
बड़े तंज सहे , हर रंज सहे 
हर रंग से पड़ा साबका
तुझे क्या कहूँ , तुझे क्या पता ?
मेरे हमसफ़र 
तू मेरे साथ था या कहीं दूर था 
ना मेरा  ना तेरा कसूर था 
ये सफ़र जो हुआ हमारे दरमियाँ 
हमें नापती रही दो किश्तियाँ 
हम नदी के दो किनारे रहे
जो साथ रहे दो किनारे रहे 
मेरे हमसफ़र 
ये था बड़ा अजब वाकिया 
इसे जिसने पढ़ा , इसे जिसने सुना 
वो पूछते है - इसे कैसे जिया ?
उन्हें क्या कहूँ ? मुझे नहीं पता .
मेरे हमसफ़र - अब अलविदा .

1 टिप्पणी:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...