अब नहीं बची
कोई वजह हमारे बीच
बनाया था जो सेतु
राम ने
समुद्र में तैरते पत्थरों के साथ
अब सब नर्मदा के गर्भ में
तलहटी में बसे शिवलिंग |
काशी के चार द्वारों पर बैठे
शहर कोतवाल
काल भैरव |
जीवन नहीं काशी
जो शिवजी के त्रिशूल की
नोक पर बसा हो
जीवन है -
शव में अवस्थित बेताल
जिसे ढोता है विक्रमादित्य
और सफ़र में
सुनाता है तरह - तरह के
किस्से -कहानियां |
जिनका उत्तर जानकर भी नहीं देने पर
हो जायेंगे सर के टुकड़े-टुकड़े |
क्यों धारण कर लेती है
धरती विधवा की तरह
हिमाच्छादित सफ़ेद वस्त्र
जब निकल जाती है सब ऊष्मा
और शरीर
यौवन की ऊष्मा के बाद
सफ़ेद केश |
अब नहीं बची कोई वजह
हमारे बीच
ना संबंधों का माधुर्य
न साहचर्य
एक पूरी तरह जली हुई रस्सी
जिसमे अतीत के बंधनों के अवशेष
सुरक्षित भले ही हों
पर हथेली का दबाव
तब्दील कर देगा राख में |
एक मुट्ठी राख
और अस्थियों के अवशेष
सब समेट लो
कलश में
शरीर ही तो नहीं
अब लगाएगा डूबकी
कलश
खोल कर मुख
समाहित हो जायेगा
धारा में |
लहरों पर सवार
सफ़ेद राजहंस
उड़ जायेंगे उस क्षण
नभ में |
( दोस्तों से पुनः क्षमा याचना सहित )
samudra manthan ker kuch lana ise kahte hain... apni yah rachna vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per tasweer parichay aur blog link ke saath
जवाब देंहटाएंएक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
जीवन की सत्यता का बोध कराती बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंलहरों पर सवार
जवाब देंहटाएंसफ़ेद राजहंस
उड़ जायेंगे उस क्षण
नभ में |
आलौकिक ..दिव्य ..अनुभूति देती हुई ....
निर्लिप्त ...विरक्त .....
बहुत सुंदर रचना ......!!
कई बार पढ़ने के बाद समझ आई |
नम्र निवेदन है ....कुछ कठिन शब्दों का अर्थ भी साथ में दिया करें .
आशा , वंदना , रश्मिप्रभा , और अनुपमा जी -
जवाब देंहटाएंआप सब जैसे सुधी पाठकों से प्रेरणा मिलती है |
कविता जीवन के सभी पक्षों पर निगाह डालती है |
बहुत से पाठकों ने रचनाओं में उदासी की बहुलता पर शिकायत की है |(क्षमा ज्ञापन कर ली थी )
और शब्दों की दुरुहता पर आपके सुझावों पर भी ध्यान दूंगा |
पर किन शब्दों पर तय नहीं हो पाया |
जीवन है -
जवाब देंहटाएंशव में अवस्थित बेताल
जिसे ढोता है विक्रमादित्य
और सफ़र में
सुनाता है तरह - तरह के
किस्से -कहानियां |
जीवन के प्रति गहन भाव लिए अद्भुत रचना ..
बहुत अर्थपूर्ण है ये तो ! पीछा करते करते आयी थी यहाँ ! सही जगह लगती है !
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