यत्र - तत्र - सर्वत्र
भस्मासुर !
मोहिनी रूप विष्णु का
अवतार , अभी दूर !
सुरसा की तरह फैलता तंत्र
नहीं कोई मृत्युंजय मंत्र
लघु से क्रमिक विकास
विकिरण फिर ह्रास
अंकुर से महाकार
काल से कराल
उत्तरोत्तर विकराल
यन्त्र - यंत्रमानव- महायंत्र
प्रजा , प्रजातंत्र , गणतंत्र
दल , महादल , दलदल
आसंग, पासंग , षड़यंत्र
काल , कलुषित , अन्यत्र
अजगर का महापाश
महाकालरात्रि का महाकाश
फिर उगेगा सूर्य पूर्व
ज्योतिपुंज महासूर्य
महाकोटि प्रभास
फिर खिलेंगे नव कमल
मानसरोवर नीलकमल
आरोहण हो अवतरित होगा
अभ्युदय बेला-विप्लव फूटेगा
यन्त्र -तंत्र -षड़यंत्र
भस्मीभूत !
खुले त्रिकाल
तांडव नटराज !
सुरसा की तरह फैलता तंत्र
जवाब देंहटाएंनहीं कोई मृत्युंजय मंत्र ... bahut khoob kaha
shabdo ka uchit upayog kiya hai aapne ....uttam rachana
जवाब देंहटाएंइस तांडव के लिए नए बिम्ब सजाये हैं ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगहन अर्थ लिए हुए सुंदर रचना .....!!
जवाब देंहटाएंशब्दों का सुंदर प्रयोग ...
बहुत खूब......
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