3 अप्रैल 2011

जंगली फूल

गिन  गिन 
दिन गिन 
इन्तजार  कर 
प्रहार कर |
हो छद्मवेश 
कृत्रिम परिवेश 
न हो सहज 
अभिनय कर |
नहीं जंगली फूल 
बोनसाई अनुकूल 
बौना होना  
आसमान छूना|
सामने हंसकर 
पीछे वारकर | 

9 टिप्‍पणियां:

  1. कई दिनों बाद बहुत गंभीर कविता लिखी है -
    आजकल के माहौल को दर्शाती हुई -
    संवेदनशील रचना -

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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