इस अजनबी शहर में घर ना दीजिये ,
शीशों के बीच हूँ पत्थर ना दीजिये .
लेना है इम्तहां तो हैं रास्ते और भी ,
हादिसों का मौसम है खंजर ना दीजिये .
कब मेरी नीयत पलट जाये क्या पता ,
जिन्हें शौके - गुनाह है अवसर ना दीजिये .
जो झूठ ही दोहराए मुंसिफ भी यहाँ तो ,
मेरे किसी सवाल का उत्तर ना दीजिये .
वाह , सुन्दर लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंहादिसों का मौसम है खंजर ना दीजिये .