कभी तिरे हाथ की लकीरों से गुजरा था ,
आईने को भी यकीं नहीं मेरा चेहरा था .
अब शब की सयाही मेरा हमसफ़र सही ,
कभी मेरा सूरज उठा था सुनहरा था .
अखबार हाथ में प्याली सा कांपे है ,
हादिसा बड़ा न हो पर डरा - डरा था .
सुनहरी शाम ने खिंची एक परछाई ,
वो दो बदन थे या इकहरा था .
नाग खजाने के आस पास दिखे ,
तितलियों पर वैसा पहरा था .
तेरे मलहम की दुकान बड़ी है मगर ,
वो चोट पुरानी थी , वो घाव हरा था .
waah dil ko chhoo liya....
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