28 अप्रैल 2010

मित्र जयराज के जन्मदिन पर !

जीवन की आपाधापी में .
कुछ बीत गया , कुछ छूट गया ,
जो बाक़ी है वह अपना है ,
जो छूट गया वह सपना है .
कुछ माँगा है , कुछ मिलता है ,
कुछ तीखा है , कुछ मखना है .
प्रारब्ध हो ! या प्राप्य हो !
सुर में अटका या टूट गया .
जीवन की आपाधापी में ,
जो बाँटा -वह अपना था
वह रचना थी ! यह रचना है !

1 टिप्पणी:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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